Wednesday, May 29, 2019

आम आदमी पार्टी क्या राष्ट्रीय राजनीति में हाशिए पर सिमट रही है?

आम आदमी पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में 40 सीटों पर लड़ी, मगर उसे कामयाबी सिर्फ़ एक सीट पर मिली.

यही नहीं, दिल्ली में जहाँ कि उसी की पार्टी की सरकार है, वहाँ भी पार्टी को सीभी सात सीटों पर हार का मुँह देखना पड़ा.

इसके साथ ही वोट प्रतिशत के लिहाज़ से भी ये पार्टी बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच गई है.

जबकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इसी पार्टी को पंजाब की चार सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

लोकसभा चुनाव में इतने खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के अंदर और बाहर सभी ओर से पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

चांदनी चौक की विधायक अलका लांबा ने 23 मई को चुनावी नतीजे सामने आने के बाद पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया है.

इसके साथ ही कई पूर्व सहयोगियों ने पंजाब से लेकर दिल्ली तक आम आदमी पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के लिए अरविंद केजरीवाल को ज़िम्मेदार ठहराया है.

ऐसे में सवाल उठता है कि साल 2020 में दिल्ली विधानसभा और 2022 में पंजाब विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए कैसी चुनौतियां सामने आएंगी.

वरिष्ठ पत्रकार सरबजीत पंधेर मानते हैं कि पंजाब में मतदाताओं के मोहभंग होने के लिए अरविंद केजरीवाल से ज़्यादा उनके सहयोगी ज़िम्मेदार हैं.

वह कहते हैं, "पंजाब में सभी पार्टियों के कार्यकर्ता राजनीतिक निर्णयों में ज़्यादा हक़ दिए जाने की मांग करते हैं. आम आदमी पार्टी में ज़मीनी स्तर के स्वयंसेवक भी ज़्यादा हक़ मांग रहे थे. लेकिन यहां पर आम आदमी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य स्तरीय नेताओं जैसे सुच्चासिंह छोटेपुर को पार्टी से निकाल दिया. इसके बाद गुग्गी को पार्टी अध्यक्ष बना दिया. और ये फ़ैसले आम कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श किए बगैर लिए गए. ऐसे में पंजाब में पार्टी को खड़ा करने वाले कार्यकर्ताओं के मनोबल और अपेक्षाओं को काफ़ी ठेस पहुंची."

"इसके बाद पार्टी ने दिल्ली से नेताओं को भेजना शुरू कर दिया. जबकि अपेक्षा ये की जा रही थी कि ज़मीन से ऊपर उठकर आने वाले नेताओं को नेतृत्व की ज़िम्मेदारी दी जाएगी. इसमें अरविंद केजरीवाल का कसूर ये है कि उन्होंने साफ़ मिल रहे संकेतों को ध्यान से देखकर सुधार के क़दम उठाने की जगह उन्हें नज़रअंदाज़ किया."

पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले कुछ इस तरह के संकेत भी मिले थे कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पंजाब में पार्टी के ढांचे को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रहा था.

पंजाब में आम आदमी पार्टी की राजनीति पर लंबे समय से नज़र रखने वाले बीबीसी पंजाबी सेवा के संवाददाता खुशहाल लाली बताते हैं कि पंजाब में पार्टी ने किसी तरह के ढांचे को खड़ा करने की ओर ध्यान नहीं दिया.

खुशहाल बताते हैं, "2014 में पंजाब में पार्टी ने जिन लोगों को टिकट दिया वो अपने आप में बेहद अच्छे उम्मीदवार थे. पार्टी ने उनके चुनाव को लेकर काफ़ी सजगता बरती. लेकिन कुछ समय बाद किसी विचारधारा के अभाव में सभी स्थानीय नेताओं में 2017 में होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री बनने की होड़ मचने लगी. इस वजह से पार्टी को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इसके बाद पार्टी में बगावत के स्वर काफ़ी मुखर हो गए जो कि आने वाले समय में पार्टी के लिए पंजाब में मुसीबत खड़ी कर सकते हैं."

पार्टी को लगभग 18 फीसदी वोट मिले हैं. दूसरे नंबर पर कांग्रेस और पहले नंबर पर बीजेपी मौजूद है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसका असर 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा.

राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद जोशी मानते हैं कि बीते कुछ समय में पार्टी का उसके मतदाताओं से संपर्क कम हुआ है.

वह बताते हैं, "ये पहला मौका है जब वोट प्रतिशत के आधार पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई है. ऐसे में दिल्ली में आम आदमी पार्टी का भविष्य मुझे बहुत अच्छा नज़र नहीं आता है. विधानसभा चुनाव में भी पार्टी सफल नहीं हुई, या सरकार बनाने में सफल नहीं हुई तो आम आदमी पार्टी के लिए एक बार फिर ख़ुद को मुख्यधारा में लाना बहुत मुश्किल होगा."

साल 2020 में पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुकीं विधायक अलका लांबा ने बीबीसी को बताया है कि वह और उनके जैसे कई दूसरे विधायक काफ़ी समय से मुख्यमंत्री के सामने अपने क्षेत्र की समस्याएं रख रहे थे लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया.

लांबा कहती हैं, "पार्टी के विधायकों का एक वॉट्सऐप ग्रुप है जिसमें विधायक अपने-अपने क्षेत्र की समस्याएं मुख्यमंत्री के सामने रखते हैं लेकिन उन पर कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद जब 23 मई को नतीज़े सामने आए तो मैंने इसी ग्रुप में इन विधायकों की बात दोहराई तो मुझे ग्रुप से बाहर निकाल दिया गया"

Monday, May 13, 2019

السعودية تدين تعرض ناقلتي نفط سعوديتين لهجوم تخريبي قرب المياه الإقليمية للإمارات

أدان وزير الطاقة السعودي خالد الفالح تعرض ناقلتي نفط سعوديتين لهجوم تخريبي قرب المياه الاقليمية لدولة الإمارات العربية المتحدة.

وقال الوزير السعودي إن الناقلتين كانتا في طريقهما لعبور الخليج في المياه الاقتصادية لدولة الإمارات العربية قرب إمارة الفجيرة، صباح الأحد.

وكانت الخارجية الإماراتية قد أعلنت أن 4 سفن تجارية تعرضت لأعمال تخريب قرب مياهها الإقليمية.

وأضاف الوزير في بيان، نشرته وكالة الأنباء السعودية، صباح الاثنين "كانت إحداهما في طريقها للتحميل بالنفط السعودي من ميناء رأس تنورة، ومن ثم الاتجاه إلى الولايات المتحدة لتزويد عملاء (أرامكو) السعودية".

وكانت دول عربية قد أعربت عن استنكارها لـ"أعمال التخريب" التي تعرضت لها سفن تجارية قرب المياه الإقليمية الإماراتية.

وقالت وزارة الخارجية المصرية في بيان إنها "تدين كل ما من شأنه المساس بالأمن القومي الإماراتي".

وأكد البيان "تضامن مصر حكومة وشعبا مع حكومة وشعب الإمارات الشقيقة في مواجهة كافة التحديات التي قد تواجهها".

كما أصدر مجلس التعاون الخليجي بيانا ندد فيه بأعمال التخريب التي تعرضت لها السفن في المياه الاقليمية للإمارات.

وقال الأمين العام للمجلس عبداللطيف الزياني في بيان "مثل هذه الممارسات غير المسؤولة من شأنها أن تزيد من درجة التوتر والصراع في المنطقة وتعرض مصالح شعوبها لخطر جسيم".

وأصدرت وزارة الخارجية الأردنية بيانا مشابها أكدت فيه "موقف الأردن الثابت والرافض لأي عمل إجرامي يهدد أمن وسلامة حركة الملاحة البحرية في الخليج العربي أيا كان مصدره".

وكانت وزارة الخارجية الإماراتية قد أعلنت أن الحادث وقع بالقرب من إمارة الفجيرة الواقعة خارج مضيق هرمز الذي يعتبر ممرا حيويا للنفط والغاز.

وقالت الوزارة إن تعرض السفن للتخريب وحياة طاقمها للخطر يعتبر "تطورا خطيرا".

ولم يعط البيان تفاصيل إضافية عن طبيعة أعمال التخريب، كما لم يكشف عن هوية السفن التي تعرضت للتخريب.

وأكد أن الحادث لم يؤد إلى تسرب مواد ضارة إلى المياه.

وثمة حالة من التوتر في منطقة الخليج، إذ أرسلت الولايات المتحدة مؤخرا حاملة طائرات وقاذفات من طراز "بي 52" إلى المنطقة.

وقال البيت الأبيض إن الهدف هو مواجهة إشارات تهديدية واضحة من طرف إيران.

ولم يوجه بيان وزارة الخارجية الإماراتية اتهامات لأي طرف بخصوص "الفعل التخريبي".

وكانت حكومة الفجيرة قد نفت في تغريدة على موقع التواصل الاجتماعي "تويتر" التقارير الإعلامية التي تحدثت عن وقوع انفجارات داخل ميناء الفجيرة وقالت إن الميناء يعمل بشكل طبيعي.

ونفى بيان الحكومة وقوع أي حادث داخل الميناء، وأكد أن حكومة الإمارات اتخذت الخطوات اللازمة وفتحت تحقيقا بشأن الحادث بتنسيق دولي.