Tuesday, October 30, 2018

सरदार पटेल की 'दुनिया की सबसे बड़ी' मूर्ति के नीचे पानी को क्यों तरस रहे हैं किसान

1 अक्तूबर को भारत सरकार 'दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति' का अनावरण करने वाली है.

'भारत के लौह पुरुष' के नाम से मशहूर सरदार वल्लभ भाई पटेल की इस मूर्ति को भारत सरकार ने 'स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' का नाम दिया है.

गुजरात के अहमदाबाद से क़रीब 200 किलोमीटर दूर स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल की इस मूर्ति को बनाने में लगभग तीन हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च हुए हैं.

लेकिन दक्षिणी गुजरात के नर्मदा ज़िले में इस मूर्ति के आसपास रहने वाले लोग मानते हैं कि इतनी बड़ी रकम अगर सूबे के ज़रूरतमंदों को मदद के तौर पर दी जाती तो उनकी हालत काफ़ी सुधर सकती थी.

ख़ासकर उन किसानों के हालात तो सुधर ही सकते थे जो नर्मदा नदी के किनारे तो रह रहे हैं पर अपने खेतों में पानी के लिए तरस रहे हैं.

39 साल के विजेंद्र ताडवी का गाँव नाना पिपड़िया मूर्ति की जगह से मात्र 12 किलोमीटर दूर है. उनके पास तीन एकड़ ज़मीन है और वो मिर्च, मक्के और मूंगफली की खेती करते हैं.

भारत के तमाम अन्य किसानों की तरह विजेंद्र भी फ़सलों में पानी के लिए मॉनसून का इंतज़ार करते हैं. इस इलाक़े के काफ़ी किसान पंप की मदद से ज़मीन का पानी खींचते हैं ताकि खेतों की सिंचाई की जा सके.

विजेंद्र कहते हैं कि नर्मदा नदी से नज़दीकी होने के बावजूद उनके खेतों तक नदी का पानी नहीं पहुँचता. इसीलिए पानी की समस्या इस इलाक़े के किसानों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है.

किसानों की नाराज़गी
साल 2015 में विजेंद्र ताडवी ने खेती के साथ-साथ मूर्ति स्थल पर ड्राइवर की नौकरी करने का फ़ैसला किया था ताकि उनका घर चल सके.

वो गुजरात सरकार की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि मूर्ति बनने में जो तीन हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं, उसमें आधी से ज़्यादा धनराशि का योगदान गुजरात सरकार ने किया है और बाकी का पैसा केंद्र सरकार ने आवंटित किया था. एक रिपोर्ट के अनुसार इस मूर्ति को बनाने के लिए सार्वजनिक चंदा भी इकट्ठा किया गया था.

लेकिन विजेंद्र ताडवी जैसे किसान गुजरात सरकार के इस फ़ैसले से काफ़ी नाराज़ हैं.

विजेंद्र कहते हैं, "एक विशालकाय मूर्ति पर इतना पैसा ख़र्च करने से अच्छा होता कि सरकार सूखा पीड़ित किसानों के लिए पानी की व्यवस्था तैयार कर देती."

राजनीति का खेल
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म गुजरात में हुआ था. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका रही.

भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2010 में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल को समर्पित इस मूर्ति के निर्माण की घोषणा की थी.

बीते कुछ सालों में कई बार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को 'हिन्दू राष्ट्रवादी नेता' के तौर पर पेश करने की कोशिश की है.

साथ ही मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को सरदार पटेल का क़द छोटा करने का ज़िम्मेदार ठहराया है.

भाजपा का आरोप है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू की छवि को बढ़ाने और उनके वंशजों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने सरदार पटेल को हमेशा 'खेल से बाहर' रखा.

साल 2013 में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "हर एक भारतीय को इस बात का अफ़सोस है कि सरदार पटेल क्यों देश के पहले प्रधानमंत्री नहीं बन पाये."

भारत में आज़ादी के कुल 71 वर्षों में से क़रीब 50 साल तक कांग्रेस पार्टी का राज रहा है.

इसीलिए भारतीय जनता पार्टी ने सरदार पटेल की इस मूर्ति के वैचारिक प्रभाव को ज़्यादा से ज़्यादा विशालकाय बनाने की कोशिश की है.

पटेल मेमोरियल में एक तीन सितारा होटल बनाया गया. यहाँ एक म्यूज़ियम भी है और एक रिसर्च सेंटर भी जो कि पटेल के पसंदीदा विषयों 'गुड गवर्नेंस' और 'कृषि विकास' पर काम करेगा.