Tuesday, November 27, 2018

केजरीवाल बोले- नई पेंशन स्कीम धोखा, रामलीला मैदान के शाप से बचे मोदी सरकार

पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर देश भर से आए कर्मचारी सोमवार को दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जुटे तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी समर्थन देने पहुंचे. उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को दुखी कर कोई सरकार खुश नहीं रह सकती. केजरीवाल ने विधानसभा के विशेष सत्र में पुरानी पेंशन लागू करने का प्रस्ताव पेश करने की बात कही.

केजरीवाल ने कहा कि नई पेंशन स्कीम धोखा है, इसलिए वे पुरानी पेंशन लागू कराने को लेकर सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने अगले तीन महीने में पुरानी पेंशन को लागू नहीं किया तो वो देशभर के लोगों और गैर बीजेपी शासित राज्यों को लामबंद करेंगे. केजरीवाल ने दावा किया कि अगर पुरानी पेंशन स्कीम लागू नहीं हुई तो सरकारी कर्मचारी भी केंद्र सरकार के खिलाफ हो जाएंगे.

केजरीवाल ने कहा कि कर्मचारियों में देश की सरकार बदलने की ताकत है. मैं केंद्र सरकार को चेतना चाहता हूं कि सीआईडी और आईबी वालों को बता दें कि अगले 3 महीने में मांग नहीं मानी तो 2019 में कयामत आने वाली है. ये रामलीला मैदान जिसको शाप देता है, वो खत्म हो जाता है. केजरीवाल ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री से अपील करना चाहता हूं कि अगर आप राष्ट्रनिर्माण करना चाहते हैं तो सरकारी कर्मचारियों को दुखी नहीं कर सकते.

इस दौरान आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह भी रामलीला मैदान में मौजूद रहे. अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि जब 40 दिन सांसद और विधायक रहे लोगों को ताउम्र पेंशन मिल सकती है, तो 40 साल तक सरकारी कर्मचारी रहे लोगों को पेंशन क्यों नहीं मिल सकती. मौजूदा केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए संजय सिंह ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि रामलीला मैदान का शाप मत लेना. पेंशनवालों को हल्के में जो लेगा उसे रामलीला मैदान में कही गई बातों का शाप लगेगा.

 बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी बुधवार को अपना घोषणा पत्र जारी कर सकती है. बता दें कि राजस्थान में अभी बीजेपी की सरकार है. चुनाव से पहले सामने आए कई सर्वों में वसुंधरा राजे हारते हुए दिख रही हैं. यही कारण है कि बीजेपी इन चुनावों में पूरा जोर लगा रही है.

गौरतलब है कि कांग्रेस ने घोषणा पत्र जारी होने से पहले यह वादा कर दिया है कि राज्यभर के बेरोजगार युवाओं को घर बैठे बेरोजगारी भत्ता देंगे.

राजस्थान में अब लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत कई स्टार प्रचारक राज्य में प्रचार करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी राजस्थान में कुल 10, अमित शाह 20 रैलियों को संबोधित करेंगे.

सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी राजस्थान के दौरे पर थे, यहां उन्होंने अजमेर शरीफ-पुष्कर मंदिर का दौरा भी किया था. मंगलवार को भी राजस्थान में अमित शाह, अशोक गहलोत, योगी आदित्यनाथ, सचिन पायलट जैसे बड़े नेताओं की रैलियां हैं.

Wednesday, November 7, 2018

ईरान की घर ठंडा रखने वाली हज़ारों साल पुरानी तकनीक बादगीर

लेकिन बादगीर के हवादार आंगन में बैठने के बाद तपता सूरज भी मद्धम जान पड़ता है.

इतना आराम मिलता है कि अपने मेज़बान को अलविदा कहने का मन नहीं होता.

यहां बैठ कर आप जब आस-पास की चीज़ों को निहारते हैं, तब एहसास होता है कि इंसान ने इस गर्म माहौल में ख़ुद को सुकून देने की ये तकनीक हज़ारों बरस पहले ही ईजाद कर ली थी.

ईरान के हज़ारों साल पुराने एसी
बादगीर यानी हवा पकड़ने वाले ये ढांचे चिमनी जैसे हैं, जो यज़्द और ईरान के रेगिस्तानी शहरों की पुरानी इमारतों के ऊपर दिखते हैं.

ये ठंडी हवा को पकड़ कर इमारत में नीचे की तरफ़ ले जाने का काम करते हैं. इनकी मदद से मकानों को भी ठंडा किया जाता है.

और उन चीज़ों को बचाने का काम भी होता है, जो गर्मी में ख़राब हो सकती हैं.

तमाम रिसर्च से साबित हुआ है कि बादगीर की मदद से तापमान को दस डिग्री सेल्सियस तक घटाया जा सकता है.

प्राचीन काल में फ़ारस से लेकर, मिस्र, अरब और बेबीलोन की सभ्यताओं तक, ऐसे आर्किटेक्चर को बनाने की कोशिश की गई जो मौसम की मार से बचा सके.

ऐसे ज़्यादाचर ढांचों को क़ुदरती तौर पर हवादार बनाने की कोशिश की गई.

बादगीरों या हवादार ढांचों की ऐसी मिसालें मध्य-पूर्व से लेकर मिस्र और भारत-पाकिस्तान तक देखी जा सकती हैं.

कैसे बनाए जाते हैं ये बादगीर
बादगीर, इमारतों के सबसे ऊंचे हिस्से में बने होते हैं. इसलिए इनकी देख-रेख बड़ी चुनौती होती है.

इनकी टूट-फूट का ख़तरा ज़्यादा होता है. ईरान की कई इमारतों के ऊपर बने ये ढांचे यानी बादगीर चौदहवीं सदी तक पुराने हैं.

फ़ारसी कवि नासिर ख़ुसरो की नज़्मों में भी बादगीर का ज़िक्र मिलता है. ये नज़्में तो डेढ़ हज़ार साल पुरानी हैं.

वहीं, मिस्र के लक्सर शहर में ईसा से 1300 साल पुरानी कुछ पेंटिंग मिली हैं.

इन चित्रों में भी बादगीर जैसी संरचनाएं देखने को मिलती हैं.

डॉक्टर अब्दुल मोनिम अल-शोरबागी सऊदी अरब के जेद्दा स्थित इफ़त यूनिवर्सिटी में आर्किटेक्चर और डिज़ाइन के प्रोफ़ेसर हैं.

डॉक्टर शोरबागी कहते हैं कि मध्य-पूर्व के देशों से लेकर, पाकिस्तान और सऊदी अरब तक बादगीर मिलते हैं.

ये इराक़ के अब्बासी ख़लीफ़ाओं के दौर के महलों की चौकोर इमारतों से मिलते-जुलते हैं.

ये महल इराक़ के उखैदर इलाक़े में आठवीं सदी में बनाए गए थे.

वैसे एक थ्योरी ये भी है कि बादगीर का विकास अरब देशों में हुआ. जब अरबों ने ईरान पर जीत हासिल की, तो उनके साथ ये फ़ारस भी पहुंचा.

यज़्द शहर की ज़्यादातर इमारतों पर बने ये बादगीर आयताकार हैं. चारों तरफ़ हवा आने के लिए खांचे बने हुए हैं.

लेकिन स्थानीय लोग बताते हैं कि छह और आठ मुंह वाले बादगीर भी मिलते हैं.

यज़्द की पुरानी इमारत में चलने वाले एक कैफ़े के कर्मचारी मोइन कहते हैं कि, 'बादगीर में हर दिशा से आने वाली हवा पकड़ने के लिए खांचे बने होते हैं. जबकि यज़्द से कुछ दूर स्थित क़स्बे मेबूद में सिर्फ़ एक तरफ़ खांचे वाले बादगीर मिलते हैं क्योंकि वहां तो एक ही तरफ़ से हवा आती है.'

Tuesday, October 30, 2018

सरदार पटेल की 'दुनिया की सबसे बड़ी' मूर्ति के नीचे पानी को क्यों तरस रहे हैं किसान

1 अक्तूबर को भारत सरकार 'दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति' का अनावरण करने वाली है.

'भारत के लौह पुरुष' के नाम से मशहूर सरदार वल्लभ भाई पटेल की इस मूर्ति को भारत सरकार ने 'स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' का नाम दिया है.

गुजरात के अहमदाबाद से क़रीब 200 किलोमीटर दूर स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल की इस मूर्ति को बनाने में लगभग तीन हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च हुए हैं.

लेकिन दक्षिणी गुजरात के नर्मदा ज़िले में इस मूर्ति के आसपास रहने वाले लोग मानते हैं कि इतनी बड़ी रकम अगर सूबे के ज़रूरतमंदों को मदद के तौर पर दी जाती तो उनकी हालत काफ़ी सुधर सकती थी.

ख़ासकर उन किसानों के हालात तो सुधर ही सकते थे जो नर्मदा नदी के किनारे तो रह रहे हैं पर अपने खेतों में पानी के लिए तरस रहे हैं.

39 साल के विजेंद्र ताडवी का गाँव नाना पिपड़िया मूर्ति की जगह से मात्र 12 किलोमीटर दूर है. उनके पास तीन एकड़ ज़मीन है और वो मिर्च, मक्के और मूंगफली की खेती करते हैं.

भारत के तमाम अन्य किसानों की तरह विजेंद्र भी फ़सलों में पानी के लिए मॉनसून का इंतज़ार करते हैं. इस इलाक़े के काफ़ी किसान पंप की मदद से ज़मीन का पानी खींचते हैं ताकि खेतों की सिंचाई की जा सके.

विजेंद्र कहते हैं कि नर्मदा नदी से नज़दीकी होने के बावजूद उनके खेतों तक नदी का पानी नहीं पहुँचता. इसीलिए पानी की समस्या इस इलाक़े के किसानों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है.

किसानों की नाराज़गी
साल 2015 में विजेंद्र ताडवी ने खेती के साथ-साथ मूर्ति स्थल पर ड्राइवर की नौकरी करने का फ़ैसला किया था ताकि उनका घर चल सके.

वो गुजरात सरकार की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि मूर्ति बनने में जो तीन हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं, उसमें आधी से ज़्यादा धनराशि का योगदान गुजरात सरकार ने किया है और बाकी का पैसा केंद्र सरकार ने आवंटित किया था. एक रिपोर्ट के अनुसार इस मूर्ति को बनाने के लिए सार्वजनिक चंदा भी इकट्ठा किया गया था.

लेकिन विजेंद्र ताडवी जैसे किसान गुजरात सरकार के इस फ़ैसले से काफ़ी नाराज़ हैं.

विजेंद्र कहते हैं, "एक विशालकाय मूर्ति पर इतना पैसा ख़र्च करने से अच्छा होता कि सरकार सूखा पीड़ित किसानों के लिए पानी की व्यवस्था तैयार कर देती."

राजनीति का खेल
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म गुजरात में हुआ था. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका रही.

भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2010 में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल को समर्पित इस मूर्ति के निर्माण की घोषणा की थी.

बीते कुछ सालों में कई बार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को 'हिन्दू राष्ट्रवादी नेता' के तौर पर पेश करने की कोशिश की है.

साथ ही मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को सरदार पटेल का क़द छोटा करने का ज़िम्मेदार ठहराया है.

भाजपा का आरोप है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू की छवि को बढ़ाने और उनके वंशजों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने सरदार पटेल को हमेशा 'खेल से बाहर' रखा.

साल 2013 में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "हर एक भारतीय को इस बात का अफ़सोस है कि सरदार पटेल क्यों देश के पहले प्रधानमंत्री नहीं बन पाये."

भारत में आज़ादी के कुल 71 वर्षों में से क़रीब 50 साल तक कांग्रेस पार्टी का राज रहा है.

इसीलिए भारतीय जनता पार्टी ने सरदार पटेल की इस मूर्ति के वैचारिक प्रभाव को ज़्यादा से ज़्यादा विशालकाय बनाने की कोशिश की है.

पटेल मेमोरियल में एक तीन सितारा होटल बनाया गया. यहाँ एक म्यूज़ियम भी है और एक रिसर्च सेंटर भी जो कि पटेल के पसंदीदा विषयों 'गुड गवर्नेंस' और 'कृषि विकास' पर काम करेगा.