Friday, February 15, 2019

港男在台杀女案:放宽引渡限制提议引政治打压忧虑

去年一名香港男子怀疑在台湾杀害女友后返回香港,但因为台湾与香港之间没有司法互助协议,两地政府都无法把他引渡回台湾受审。香港目前有两条与外地引渡嫌疑犯的法例,但条文订明它们不适用于从香港和“中国其他部份之间”(即是指中国大陆、台湾和澳门)引渡嫌疑犯。香港政府日前建议撤消这种规定,并容许香港执法部门取得行政长官许可后,就每一宗个案向法庭申请引渡许可,该建议在香港引起争议。

虽然香港法庭对是否将嫌疑犯引渡有最终决定权,但有人权观察组织始终担心,香港的法庭会不会受到政治的压力,向中国大陆等“人权纪录差劣”的地区移交嫌疑犯。

香港目前与32个司法管辖区签有相互法律协助协定,同时与这些国家其中20个签订移交逃犯协定。香港与这些地区将沿用相关安排,不受新建议影响。

撤销限制
香港目前主要依靠两条法例处理移交逃犯和向其他地方提供司法协助,分别是《刑事事宜相互法律协助条例》和《逃犯条例》。这两条法例分别订明它们不适用于中国大陆、台湾和澳门。换句话说,香港目前没有法律授权可以向这些地方提供法律援助、或引渡嫌疑犯。

去年2月,香港男子陈同佳被指在台湾谋杀女友后返回香港。台湾当局多次透过大陆委员会向香港政府提出请求,希望取得疑犯证供,甚至把他移交到台湾受审。但由于《刑事事宜相互法律协助条例》和《逃犯条例》订明条例不适用于台湾,无法处理台湾的要求,在香港社会引起关注。

另外,香港《东方日报》创办人之一马惜珍,他在1978年因贩毒和涉嫌行贿被香港警方发出拘捕令,因而与家人潜逃台湾,在台湾继续经营公司,直至2015年病逝台湾,终年77岁。

香港政府的建议也适用于澳门。香港商人刘銮雄多年前被澳门法庭裁定行贿澳门前运输工务司长欧文龙罪成,被判监5年3个月,但刘銮雄并不在澳门境内,而港澳也没有引渡逃犯协议,澳门当局无法要求香港引渡刘銮雄到当地坐牢。

而虽然香港一直没有把逃犯移交中国大陆,大陆当局多年来都有单方面按香港要求移交嫌疑犯。其中,三名香港人去年9月持枪抢劫一家钟表店后逃到中国大陆,被广东公安拘捕,并于同年12月移交香港警方。

香港保安局向立法会的文件强调,对嫌疑犯的指控必须在两个司法管辖区同样构成罪行才可引用这两部法例,覆盖范围也只限于谋杀、毒品、性罪行等46项严重罪行,不适用于具政治性质的罪行,有关人士也可以要求对法庭最后的决定提出覆核。

2015年据报被中国拘留的铜锣湾书店店长林荣基接受香港传媒访问时指出,他被中国大陆指控他在香港邮寄大量书借,被指触犯中国大陆“违法经营书籍销售”罪。他说担心会受修例影响,令中国大陆政府有办法把他引渡到当地受审。

虽然修例建议订明不适用于政治罪行,但林荣基认为中国大陆可以配合香港法例以另外的罪行为名,把自己引渡到当地。

香港民主派立法会议员涂谨申认为,香港政府应与台湾政府就陈同佳涉嫌谋杀女友的案件,与台湾当局签订一次性的协议,之后再寻求北京政府同意,与台湾商讨长期的政策。

但建制派议员李慧琼认为,香港社会不应太快批评中国大陆会把政治问题包装成其他罪行提出引渡。她认为,修例后仍然由香港法院决定是否将嫌疑犯引渡,因此香港要对“法治法院有信心,不能因担心而不去想。我们都要相信我们的制度。”

Friday, February 8, 2019

5 साल में संसद में 296 दिन प्रेजेंट रहे लालकृष्ण आडवाणी, बोले सिर्फ 365 शब्द

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी संसद में कभी प्रखर वक्ता माने जाते रहे हैं. लेकिन अब यमुना में काफी पानी बह चुका है और उनकी दुनिया पूरी तरह से बदल गई है. संसद में उनका बोलना लगातार कम हो रहा है. 15वीं लोकसभा (2009-14) की तुलना में मौजूदा यानी 16वीं लोकसभा (2014-19) में आडवाणी के बोले जाने वाले शब्दों में 99 फीसदी की गिरावट आई है. संसद में पिछले पांच साल में आडवाणी 296 दिन प्रेजेंट रहे लेकिन सिर्फ 365 शब्द बोल पाए.

8 अगस्त, 2012 को लोकसभा में असम में घुसपैठ और राज्य में बड़े पैमाने पर होने वाली जातीय हिंसा को लेकर स्थगन प्रस्ताव पर बहस चल रही थी. तब बीजेपी की तरफ से इस बहस का नेतृत्व बीजेपी के 'लौह पुरुष' लालकृष्ण आडवाणी ने ही किया था. उस दिन संसद में खूब हंगामा हुआ था और इस स्थगन प्रस्ताव पर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की हालत खराब हो गई थी. ट्रेजरी बेंच की तरफ से लगातर बाधा डालने के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी लगातार बोलते रहे और जो कुछ कहना चाहते थे कह कर रहे. दशकों लंबी बेहतरीन राजनीतिक पारी खेलने वाले आडवाणी के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस अकेले एक दिन के आडवाणी के भाषण में 4,957 शब्द शामिल थे. उनके इस भाषण में 50 बार व्यवधान डालने की कोशिश की गई.

अब बात 8 जनवरी, 2019 की. इस दिन भी लोकसभा में एक और हंगामेदार दिन था. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने सदन में नागरिकता संशोधन बिल रखा था. यह बिल संसद में पारित हुआ तो इसका असम के सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर गहरा असर होगा. जिस दिन लोकसभा में यह बिल पेश हुआ, बहस हुई, आडवाणी सदन में मौजूद थे. लेकिन इतना महत्वपूर्ण बिल होने के बावजूद उन्होंने एक शब्द नहीं बोला.

यानी इन दस सालों में बीजेपी के 'लौह पुरुष' आडवाणी के लिए दुनिया पूरी तरह से बदल गई. कई वेबसाइट्स पर सांसदों के कामकाज का लेखा-जोखा मौजूद होता है. इनसे यह पता चलता है कि पिछले पांच साल में आडवाणी ने सिर्फ 365 शब्द बोले हैं. इसकी पिछली यानी 15वीं लोकसभा के दौरान आडवाणी 42 बार बहसों और अन्य कार्यवाहियों में हिस्सा लिया और करीब 35,926 शब्द बोले थे.

यह वही आडवाणी हैं जिनकी जीवनी 'माय कंट्री, माय लाइफ' में 1,000 पेज हैं. अपने खराब स्वास्थ्य की वजह से (वह 91 साल के हैं) लालकृष्ण आडवाणी भले ही सार्वजनिक तौर पर कम दिखते हों, लेकिन नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान संसद में उनकी उपस्थ‍िति जबर्दस्त रही है. संसद के कामकाज के दिनों उनकी उपस्थ‍िति 92 फीसदी तक रही, जो अन्य सांसदों के मुकाबले बहुत अच्छा है.

सामने आए नए तथ्य और विपक्ष के आरोपों के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में सरकार की तरफ से सफाई दी. रक्षा मंत्री ने कहा कि राफेल मामले पर सभी आरोपों को खारिज किया जा चुका है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश के सामने है. लिहाजा, विपक्ष सिर्फ गड़े मुर्दे उखाड़ने का काम कर रहा है.

राफेल पर पर्दा बरकरार, राहुल गांधी के सवाल पर आए निर्मला के भी 5 सवाल

निर्मला सीतारमण ने रक्षा मंत्रालय की नोटिंग पर कहा कि मीडिया में फाइल नोटिंग को पूरी तरह नहीं प्रकाशित किया गया है. निर्मला ने कहा कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने रक्षा सचिव की फाइल नोटिंग का स्पष्ट जवाब दिया था. लिहाजा इस संदर्भ में तत्कालीन रक्षा मंत्री का जवाब बेहद अहम है जिसे न तो प्रकाशित किया गया और न ही विपक्ष ने उठाया.

लिहाजा, निर्मला सीतारमण ने सदन में दलील दी कि यदि किसी मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय प्रगति जानना चाहता है तो उसे हस्तक्षेप नहीं कहा जाना चाहिए. विपक्ष के रुख को राजनीति और कॉरपोरेट वॉरफेयर से  जोड़ते हुए निर्मला ने कहा कि विपक्ष मल्टीनेशनल कंपनियों की युद्ध नीति से प्रेरित है और वह महज राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति कर रहा है.

वहीं पूरे मामले पर पलटवार करते हुए निर्मला सीतारमण ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निशाना साधा. निर्मला ने विपक्ष से पूछा कि क्या मौजूदा समय में वह मानता है कि पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सोनिया गांधी के नेतृत्व में गठित नेशनल एडवाइजरी काउंसिल को भी वह प्रधानमंत्री कार्यालय में हस्तक्षेप के तौर पर देखता है? लिहाजा विपक्ष को राफेल सौदे पर सवाल तभी उठाना चाहिए यदि वह पूर्व सरकार के एनएसी को भी प्रधानमंत्री कार्यालय में हस्तक्षेप के तौर पर देखता है.