बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी संसद में कभी प्रखर वक्ता माने जाते रहे हैं. लेकिन अब यमुना में काफी पानी बह चुका है और उनकी दुनिया पूरी तरह से बदल गई है. संसद में उनका बोलना लगातार कम हो रहा है. 15वीं लोकसभा (2009-14) की तुलना में मौजूदा यानी 16वीं लोकसभा (2014-19) में आडवाणी के बोले जाने वाले शब्दों में 99 फीसदी की गिरावट आई है. संसद में पिछले पांच साल में आडवाणी 296 दिन प्रेजेंट रहे लेकिन सिर्फ 365 शब्द बोल पाए.
8 अगस्त, 2012 को लोकसभा में असम में घुसपैठ और राज्य में बड़े पैमाने पर होने वाली जातीय हिंसा को लेकर स्थगन प्रस्ताव पर बहस चल रही थी. तब बीजेपी की तरफ से इस बहस का नेतृत्व बीजेपी के 'लौह पुरुष' लालकृष्ण आडवाणी ने ही किया था. उस दिन संसद में खूब हंगामा हुआ था और इस स्थगन प्रस्ताव पर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की हालत खराब हो गई थी. ट्रेजरी बेंच की तरफ से लगातर बाधा डालने के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी लगातार बोलते रहे और जो कुछ कहना चाहते थे कह कर रहे. दशकों लंबी बेहतरीन राजनीतिक पारी खेलने वाले आडवाणी के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस अकेले एक दिन के आडवाणी के भाषण में 4,957 शब्द शामिल थे. उनके इस भाषण में 50 बार व्यवधान डालने की कोशिश की गई.
अब बात 8 जनवरी, 2019 की. इस दिन भी लोकसभा में एक और हंगामेदार दिन था. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने सदन में नागरिकता संशोधन बिल रखा था. यह बिल संसद में पारित हुआ तो इसका असम के सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर गहरा असर होगा. जिस दिन लोकसभा में यह बिल पेश हुआ, बहस हुई, आडवाणी सदन में मौजूद थे. लेकिन इतना महत्वपूर्ण बिल होने के बावजूद उन्होंने एक शब्द नहीं बोला.
यानी इन दस सालों में बीजेपी के 'लौह पुरुष' आडवाणी के लिए दुनिया पूरी तरह से बदल गई. कई वेबसाइट्स पर सांसदों के कामकाज का लेखा-जोखा मौजूद होता है. इनसे यह पता चलता है कि पिछले पांच साल में आडवाणी ने सिर्फ 365 शब्द बोले हैं. इसकी पिछली यानी 15वीं लोकसभा के दौरान आडवाणी 42 बार बहसों और अन्य कार्यवाहियों में हिस्सा लिया और करीब 35,926 शब्द बोले थे.
यह वही आडवाणी हैं जिनकी जीवनी 'माय कंट्री, माय लाइफ' में 1,000 पेज हैं. अपने खराब स्वास्थ्य की वजह से (वह 91 साल के हैं) लालकृष्ण आडवाणी भले ही सार्वजनिक तौर पर कम दिखते हों, लेकिन नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान संसद में उनकी उपस्थिति जबर्दस्त रही है. संसद के कामकाज के दिनों उनकी उपस्थिति 92 फीसदी तक रही, जो अन्य सांसदों के मुकाबले बहुत अच्छा है.
सामने आए नए तथ्य और विपक्ष के आरोपों के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में सरकार की तरफ से सफाई दी. रक्षा मंत्री ने कहा कि राफेल मामले पर सभी आरोपों को खारिज किया जा चुका है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश के सामने है. लिहाजा, विपक्ष सिर्फ गड़े मुर्दे उखाड़ने का काम कर रहा है.
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निर्मला सीतारमण ने रक्षा मंत्रालय की नोटिंग पर कहा कि मीडिया में फाइल नोटिंग को पूरी तरह नहीं प्रकाशित किया गया है. निर्मला ने कहा कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने रक्षा सचिव की फाइल नोटिंग का स्पष्ट जवाब दिया था. लिहाजा इस संदर्भ में तत्कालीन रक्षा मंत्री का जवाब बेहद अहम है जिसे न तो प्रकाशित किया गया और न ही विपक्ष ने उठाया.
लिहाजा, निर्मला सीतारमण ने सदन में दलील दी कि यदि किसी मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय प्रगति जानना चाहता है तो उसे हस्तक्षेप नहीं कहा जाना चाहिए. विपक्ष के रुख को राजनीति और कॉरपोरेट वॉरफेयर से जोड़ते हुए निर्मला ने कहा कि विपक्ष मल्टीनेशनल कंपनियों की युद्ध नीति से प्रेरित है और वह महज राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति कर रहा है.
वहीं पूरे मामले पर पलटवार करते हुए निर्मला सीतारमण ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निशाना साधा. निर्मला ने विपक्ष से पूछा कि क्या मौजूदा समय में वह मानता है कि पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सोनिया गांधी के नेतृत्व में गठित नेशनल एडवाइजरी काउंसिल को भी वह प्रधानमंत्री कार्यालय में हस्तक्षेप के तौर पर देखता है? लिहाजा विपक्ष को राफेल सौदे पर सवाल तभी उठाना चाहिए यदि वह पूर्व सरकार के एनएसी को भी प्रधानमंत्री कार्यालय में हस्तक्षेप के तौर पर देखता है.
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